श्री हरी!ॐ !
हमें जरुरत क्या है अपने दैनिक जीवन में भगवान् की?उसके अस्तित्व को मानने अथवा न मानने से क्या फर्क पड़ता है हमारे दैनिक जीवन में?
उनका नाम लेने से अथवा स्मरण करने से अथवा उनके अस्तित्व को मान लेने से ही हमारी दैनिक जरुरत पूरी नहीं हो जाती!न ही हमें कोई नौकरी मिलती है, ना रोटी ही मिलती है और ना ही कोई मकान बन जाता है तो जरुरत क्या है उस भगवान् की हमें!भला क्यों मान ले हम उसे कि वो कहीं है भी?
मेरे एक मित्र है,आजकल अमरीका में उनका वास है!इंटरनेट के माध्यम से कुछ चर्चा चल रही थी तो कुछ ऐसे ही भाव वो जता रहे थे!
स्पष्ट शब्दों में वो जानना चाह रहे थे कोई "वैलिड" सा कारण जिसके आधार पर हम परमात्मा का होना मान ले!अब इसके गूढ़ प्रशन पर मुझे मौन ही साधना पड़ा!
अब कुछ पुरानी सुनी हुयी बाते स्मरण में आ रही है!उसको तो पता नहीं इस से संतुष्टि मिलेगी या नहीं पर मै जरुर संतुष्ट हो जाता हूँ ऐसी बाते स्मरण कर के!
पढ़ा था कही.. कहाँ पता नहीं!
हम जब कहीं घूमने जाते है तो अपने साथ रुपये-पैसे जरूर रखते है!हमारा ध्यान के इन पर ही केन्द्रित होता है सबसे ज्यादा!हालांकि हम इन्हें खा नहीं सकते,ओढ़-पहर नहीं सकते पर सबसे अधिक ध्यान पैसो पर ही होता है कि इनकी वयवस्था हमारे पास बनी रहे!और इन्हें पाने के लिए बहुत अधिक मेहनत भी करनी पड़ती है !
हालांकि खाना इस से ज्यादा जरुरी विषय है परन्तु हम उतना खाने कि चीजो पर ध्यान नहीं देते जितना पैसे को महत्त्व देते है!थोडा बहुत खाने की चीजे भी ले लेते है!हालांकि हम बिना खाए भी कई दिन रह सकते है फिर भी खाने की कुछ चीजे हम साथ लेके ही चलते है!
खाने से थोडा ज्यादा जरुरी है पानी!पर उस पर खाने से भी कम ध्यान दिया जाता है जाते हुए हम सोचते है कि पानी तो कही भी आसानी से उपलब्ध हो जाएगा!उपयोग के हिसाब से पानी खाने से कही अधिक बार हम प्रयोग करते है पर पानी की उपलब्धता पर खाने से कम मेहनत करनी होती है/करते है!
अब पानी से भी अधिक महत्वपूर्ण है हवा!इसके विषय में हम सोचते भी नहीं!कभी सोचते ही नहीं कि कल के लिए कुछ हवा रख ले!या कही जा रहे है तो अपनी हवा संग ले चले!
अथवा तो ये कहे कि कभी कुछ थोडा सा भी श्रम करने की जरुरत नहीं पड़ी है जीने लायक हवा को पाने के लिए!बिना कुछ किये ही ये हमें सर्वत्र उपलब्ध होती है!
क्या ये एक "वैलिड" कारण नहीं है उसके होने का कि हमारे जीने के लिए सभी जरुरी चीजे हमें बिना किसी विशेष श्रम के उपलब्ध हो जाती है!इन सब चीजो की व्यवस्था वो पहले ही कर देता है!
यहाँ बस यही स्पष्ट करने की कोशिश थी कि जो चीज हमारे जीने के लिए, जीवन के लिए जितनी महत्वपूर्ण है, अथवा तो ये कहे कि जीव के जीने के लिए जो चीज जितनी ज्यादा जरुरी है वो उसे उतने ही कम श्रम और अधिक आसानी से उपलब्ध हो जाती है!इसी आधार और अनुपात पर इन चीजो के लिए हमारे मन में चिंता-जरूरत उत्पन्न होती है!
इसी तरह खाना-पानी-हवा को भी जो प्रयोग कर रहा है, जिसके बिना हम एक क्षण भी नहीं रह सकते!खाने के बिना भी हम कुछ दिन रह सकते है,पानी के बिना भी हम कुछ दिन जी सकते है और हवा के बिना भी हम कुछ समय तक जीवित रह सकते है पर जिस कारण से हम इन सबका प्रयोग कर पाते है वो आत्मा, उस चैतन्य स्वरूप का तो हम कभी ख्याल ही नहीं करते!पर वो हवा से भी अधिक समीप होता है हमारे!उसके बिना तो एक निमेष भी शरीर जीवित नहीं रह सकता पर उसके लिए तो सांस लेने जितना श्रम भी हम नहीं करते!हमें उतना करने की भी जरुरत महसूस नहीं होती!
हमें जरूरत ही अभाव में होती है!उस परमात्मा का कभी अभाव ही हमें नहीं होता तो जरुरत भी महसूस नहीं होती!
हमें जरुरत ही नहीं है उसका होना मानने की,क्योकि कभी उसका अभाव ही नहीं है हमारे होने में!
जय हिन्द , जय श्रीराम
कुँवर जी,
हमें जरुरत क्या है अपने दैनिक जीवन में भगवान् की?उसके अस्तित्व को मानने अथवा न मानने से क्या फर्क पड़ता है हमारे दैनिक जीवन में?
उनका नाम लेने से अथवा स्मरण करने से अथवा उनके अस्तित्व को मान लेने से ही हमारी दैनिक जरुरत पूरी नहीं हो जाती!न ही हमें कोई नौकरी मिलती है, ना रोटी ही मिलती है और ना ही कोई मकान बन जाता है तो जरुरत क्या है उस भगवान् की हमें!भला क्यों मान ले हम उसे कि वो कहीं है भी?
मेरे एक मित्र है,आजकल अमरीका में उनका वास है!इंटरनेट के माध्यम से कुछ चर्चा चल रही थी तो कुछ ऐसे ही भाव वो जता रहे थे!
स्पष्ट शब्दों में वो जानना चाह रहे थे कोई "वैलिड" सा कारण जिसके आधार पर हम परमात्मा का होना मान ले!अब इसके गूढ़ प्रशन पर मुझे मौन ही साधना पड़ा!
अब कुछ पुरानी सुनी हुयी बाते स्मरण में आ रही है!उसको तो पता नहीं इस से संतुष्टि मिलेगी या नहीं पर मै जरुर संतुष्ट हो जाता हूँ ऐसी बाते स्मरण कर के!
पढ़ा था कही.. कहाँ पता नहीं!
हम जब कहीं घूमने जाते है तो अपने साथ रुपये-पैसे जरूर रखते है!हमारा ध्यान के इन पर ही केन्द्रित होता है सबसे ज्यादा!हालांकि हम इन्हें खा नहीं सकते,ओढ़-पहर नहीं सकते पर सबसे अधिक ध्यान पैसो पर ही होता है कि इनकी वयवस्था हमारे पास बनी रहे!और इन्हें पाने के लिए बहुत अधिक मेहनत भी करनी पड़ती है !
हालांकि खाना इस से ज्यादा जरुरी विषय है परन्तु हम उतना खाने कि चीजो पर ध्यान नहीं देते जितना पैसे को महत्त्व देते है!थोडा बहुत खाने की चीजे भी ले लेते है!हालांकि हम बिना खाए भी कई दिन रह सकते है फिर भी खाने की कुछ चीजे हम साथ लेके ही चलते है!
खाने से थोडा ज्यादा जरुरी है पानी!पर उस पर खाने से भी कम ध्यान दिया जाता है जाते हुए हम सोचते है कि पानी तो कही भी आसानी से उपलब्ध हो जाएगा!उपयोग के हिसाब से पानी खाने से कही अधिक बार हम प्रयोग करते है पर पानी की उपलब्धता पर खाने से कम मेहनत करनी होती है/करते है!
अब पानी से भी अधिक महत्वपूर्ण है हवा!इसके विषय में हम सोचते भी नहीं!कभी सोचते ही नहीं कि कल के लिए कुछ हवा रख ले!या कही जा रहे है तो अपनी हवा संग ले चले!
अथवा तो ये कहे कि कभी कुछ थोडा सा भी श्रम करने की जरुरत नहीं पड़ी है जीने लायक हवा को पाने के लिए!बिना कुछ किये ही ये हमें सर्वत्र उपलब्ध होती है!
क्या ये एक "वैलिड" कारण नहीं है उसके होने का कि हमारे जीने के लिए सभी जरुरी चीजे हमें बिना किसी विशेष श्रम के उपलब्ध हो जाती है!इन सब चीजो की व्यवस्था वो पहले ही कर देता है!
यहाँ बस यही स्पष्ट करने की कोशिश थी कि जो चीज हमारे जीने के लिए, जीवन के लिए जितनी महत्वपूर्ण है, अथवा तो ये कहे कि जीव के जीने के लिए जो चीज जितनी ज्यादा जरुरी है वो उसे उतने ही कम श्रम और अधिक आसानी से उपलब्ध हो जाती है!इसी आधार और अनुपात पर इन चीजो के लिए हमारे मन में चिंता-जरूरत उत्पन्न होती है!
इसी तरह खाना-पानी-हवा को भी जो प्रयोग कर रहा है, जिसके बिना हम एक क्षण भी नहीं रह सकते!खाने के बिना भी हम कुछ दिन रह सकते है,पानी के बिना भी हम कुछ दिन जी सकते है और हवा के बिना भी हम कुछ समय तक जीवित रह सकते है पर जिस कारण से हम इन सबका प्रयोग कर पाते है वो आत्मा, उस चैतन्य स्वरूप का तो हम कभी ख्याल ही नहीं करते!पर वो हवा से भी अधिक समीप होता है हमारे!उसके बिना तो एक निमेष भी शरीर जीवित नहीं रह सकता पर उसके लिए तो सांस लेने जितना श्रम भी हम नहीं करते!हमें उतना करने की भी जरुरत महसूस नहीं होती!
हमें जरूरत ही अभाव में होती है!उस परमात्मा का कभी अभाव ही हमें नहीं होता तो जरुरत भी महसूस नहीं होती!
हमें जरुरत ही नहीं है उसका होना मानने की,क्योकि कभी उसका अभाव ही नहीं है हमारे होने में!
जय हिन्द , जय श्रीराम
कुँवर जी,
आपका दिया हुआ उदाहरण बहुत उम्दा और हर इन्सान के गौर फरमाने लायक है , कुँवर जजी !
जवाब देंहटाएंआदरणीय गोदियाल जी,ये बात गौर फरमाने के लायक तो है पर हम कहा गौर कर पाते है इन बातो पर,भागम-भाग में ही दिन निकल जाते है बस! रही-सही कसार तर्कों-कुतर्को को महत्त्व देकर पूरी कर देते है!
हटाएंआपने अपना कीमती समय दिया उसके लिए आभार!
कुँवर जी,
हमें जरुरत ही नहीं है उसका होना मानने की,क्योकि कभी उसका अभाव ही नहीं है हमारे होने में!
जवाब देंहटाएंजय हिन्द , जय श्रीराम
Beautifully written !
आपका स्वागत है zeal जी,आभार!
हटाएंसटीक दृष्टांत है।
जवाब देंहटाएंहवा के बारे में खूब कहा, प्रतिदिन हम हवा का प्रबन्ध आयोजन नहीं करते क्योंकि उसकी कमी महसुस करने के अवसर ही नहीं आते, ऑक्सीजन का जीवन में मूल्य तभी समझ आता है जब रक्त में आचानक ऑक्सीजन की कमी होने पर इसे पाने के लिए संसाधन खोजने पडते है। "वैलिड" कारण जानने की उत्कंठा भी एक तरह से "अनवैलिड" है, क्योंकि वह आवश्यक्ता के स्वार्थ पर निर्भर है।
जब तक ये उत्कंठा वितंडावाद se उभर कर परमात्म तत्व को जानने-पाने के सच्चे प्रयास ना बन जाए तब तक तो अन वैलिड ही मानी जानी चाहिए...
हटाएंआपका प्रोत्साहन नित नयी उर्जा देता है सुज्ञ जी, इसके लिए हार्दिक धन्यवाद, आभार!
कुँवर जी,
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जवाब देंहटाएं.
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थोडा बहुत खाने की चीजे भी ले लेते है!हालांकि हम बिना खाए भी कई दिन रह सकते है फिर भी खाने की कुछ चीजे हम साथ लेके ही चलते है! खाने से थोडा ज्यादा जरुरी है पानी!पर उस पर खाने से भी कम ध्यान दिया जाता है जाते हुए हम सोचते है कि पानी तो कही भी आसानी से उपलब्ध हो जाएगा!उपयोग के हिसाब से पानी खाने से कही अधिक बार हम प्रयोग करते है पर पानी की उपलब्धता पर खाने से कम मेहनत करनी होती है/करते है! अब पानी से भी अधिक महत्वपूर्ण है हवा!इसके विषय में हम सोचते भी नहीं!कभी सोचते ही नहीं कि कल के लिए कुछ हवा रख ले!या कही जा रहे है तो अपनी हवा संग ले चले! अथवा तो ये कहे कि कभी कुछ थोडा सा भी श्रम करने की जरुरत नहीं पड़ी है जीने लायक हवा को पाने के लिए!बिना कुछ किये ही ये हमें सर्वत्र उपलब्ध होती है!
क्या ये एक "वैलिड" कारण नहीं है उसके होने का कि हमारे जीने के लिए सभी जरुरी चीजे हमें बिना किसी विशेष श्रम के उपलब्ध हो जाती है!इन सब चीजो की व्यवस्था वो पहले ही कर देता है!
मान्यता यह भी तो है कि जब जीने के लिये सब जरूरी चीजें पृथ्वी पर एकत्र हुई तभी जीवन की उत्पत्ति हुई और कालांतर में हम बने...
http://evolution.berkeley.edu/evosite/evo101/IIE2aOriginoflife.shtml
अभी हुई एक त्रासदी में उसे मानने वाले हजारों बेचारे भूख-प्यास के कारण असमय उस के पास पहुंच गये... उसने न जाने क्यों कोई व्यवस्था नहीं की उनके लिये, कई कई बार युद्ध-अकाल के दौरान भी वह व्यवस्था करना भूल सा जाता है... कोई वैलिड कारण बताता शब्दजाल बुनिये इस बारे में भी... :)
...
आदरणीय प्रवीन जी बिल्कुल सही कहा आपने, आपकी इस मान्यता को ही मैंने अपने शब्द दिए है! 'उसने'उसने हमारे आने से पहले ही हमारे लिए उचित व्यवस्था कर दी है,
हटाएंसाथ ही हमारे जाने की व्यवस्था भी कर रखी है!अब वो व्यवस्था कोई आपदा दिखने वाली घटना भी तो हो सकती है! श्रृष्टि की रचना और विनाश कर सकने वाले के लिए ये छोटी-छोटी सी घटनाएं तो बहुत छोटी बात होनी चाहिए....
और
शब्दजाल पर तो मै क्या कहूँ,अधिक अनुभव नहीं है इसका...
कुँवर जी,
वैसे ये "वैलिड" होने के मानदण्ड क्या होने चाहिए..?
हटाएंकुँवर जी,
उस परमात्मा का कभी अभाव ही हमें नहीं होता तो जरुरत भी महसूस नहीं होती!
जवाब देंहटाएंsahi kah rahe hain aap .
जो कही पढ़ा, संतो se सत्संग से जो सुना और फिर जो सही लगा वो ही यहाँ लिखा है शालिनी जी,अब ये सबको सही लगे जरूरी नहीं, आपको सही लगा उसके लिए आभार!
हटाएंकुँवर जी,
कोई ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता तो न रखे, विश्वास रखने वाले को इससे फ़र्क नहीं पड़ता।
जवाब देंहटाएंलेकिन जो विश्वास नहीं रखते उनकी हरसंभव कोशिश यही रहती है कि कोई उस परमसत्ता में विश्वास न रखे।
सही कहा आपने सन्जय जी, मुझे किसी ने कहा था कि मान लो इश्वर नहीं है तो उसे मानने वालो का क्या नुक्सान हो जाएगा,वे तो इश्वर भजन करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर ही देंगे किन्तु यदि वो हुआ सच में कही तो उसे ना मानने वालो का क्या रह जाएगा... उनका जीवन तो व्यर्थ ही चला जाएगा.,
हटाएंकुँवर जी,
संजय जी,
हटाएंमानसिकता का सटीक भेद उजागर किया है। बहुत बहुत आभार!!
उस परमात्मा का आभाव नहीं होता ... वो शायद इसलिए की उसने स्वतः ही सब व्यवस्था कर रखी है इन्सान के लिए ... पर फिर भी अगर उसका शुक्रिया ही मानते रहें हम वो भी बहुत है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण बात की ओर इशारा किया है आपने, साधुवाद!
जवाब देंहटाएंसोचने का विषय है, जो खाना हम खाते हैं अगर वोह पचना बंद हो जाए, जो पानी हम पीते हैं उसके वेस्ट का मूत्र बनना बंद हो जाए, हमारे मुंह में जो लार बनती है और वह भी फ्री में, अगर बननी बंद हो जाए तो ईश्वर के खिलाफ बोलने वालों का मुंह खुलना भी बंद हो जाएगा।
उसकी बनाई कायनात में नज़र डालें तो उसके एहसान का एहसास हो, मगर जो खुद को ही सबकुछ समझते हैं, उन्ही का जवाब है 'अल्लाह-हो-अकबर' (अनेक भाषाओँ में भाषा अनुसार यह अलग-अलग शब्द स्वरूपों में हैं, परन्तु अर्थ एक ही है)...... अर्थात "ईश्वर बड़ा है"... और यह पैगाम है एक इंसानों के द्वारा दूसरे इंसानों के लिए कि इंसान उसके सामने कुछ भी ताकत नहीं रखता। मगर लोग हैं कि इंसान और उसके द्वारा बनाई गई चीज़ों को ही सबकुछ समझ रहे हैं, जबकि एक बीज के बिना पौधा उगाने की भी औकात नहीं है।
जब सब कुछ उसने कर ही दिया,तो उसकी जरूरत ही कहाँ.क्यों ढूंढे वेलिड कारण,,कौन सोचे इन सब बातों पर? उसने उचित समझ अपना काम कर दिया बस ठीक है,
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा उदहारण दिया है ...... कुँवर जी !
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण इशारा किया है आपने कुँवर जी
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार!
जवाब देंहटाएंबस ये पता नहीं चल सका कि ये "वैलिड" होने के मानदंड क्या होने चाहिए!
कुँवर जी,