कवी हृदय पती तो बस एक वाह का मारा होता है!पत्नी उसे दुत्कारती रहे,कोई इज्जत ना करे(वैसे ऐसे काम वो कम ही कर पाते है जिनसे उनकी इज्जत आदि में सकारात्मक फर्क पड़ता हो!) फिर भी वो उसके प्रति कोई वैर-भाव मन में नहीं पालते!हर बार वो नकारे जाते है फिर भी वाह सुनने की चाह उनसे एक प्रयास और करवा डालती है!
अपनी सारी लगन का वो बस एक मोल आंकते है..."वाह"!(क्या कहा,भले ही सच्चे दिल से ना हो? तो भाई साहब शुद्ध कुछ मिलता है आजकल?थोड़ी बहुत(या सारी भी) मिलावट तो स्वीकार्य है!सोच में लोच तो होनी ही चाहिए!
अब कल ही की सुन लीजिये......देर रात घर पहुंचे,पत्नी श्री हमारी तरह कविहृदय तो है नहीं,सो हमारे जितनी पतिव्रता तो वो.....मेरा मतलब है वो है तो.....बस अवसर पर दिखाने पर चूक जाती है बेचारी.....!
खाना-पीना हो चुका था,हमारे लिए बचा था या नहीं इसमें हमारी कोई रुचि नहीं थी!(रुचि होने से कोई फर्क भी नहीं पड़ने वाला था,पर हमारी सच में कोई रुचि नहीं थी!)
खट-खट ने जब रूकने का नाम नहीं लिया तो देवी जी प्रकट हुई या उन्हें होना पड़ा जो भी.....!द्वार खुला...लेकिन उसका मस्तिष्क नहीं!"आ गए" जरूर उसने मन ही मन में कहा होगा,लेकिन मैंने महसूस कर लिया था,इसी लिए तो उसका द्वार खोलते ही वापस चला जाना मुझे गलत नहीं लगा!
उसके इसी व्यवहार ने तो मेरे अहम् का समूल नाश कर दिया था,अर्थार्थ अब "शुद्ध कवी" ही बचा था!जो बस हर बार,हर बात में कविता खोजता फिरता है!हालांकि मै जान चुका था कि पत्नीश्री का क्रोध बस राख के नीचे दबी आग कि तरह ही है जो थोड़ी सी कुरेदने पर भी भड़क सकता है....पर.....कविहृदय.....इसका क्या करे!
जो कविता बना के लाया था वो तो अब पुरानी जान पड़ी या उसे सुनाने के लिए भूमिका बना रहा था,मै अब उसे एक तुरन्त बनायी कविता सुना रहा था.....
वाह कह दे एक बार
बस वाह कह दे,
खाना भले ही ना दे
तू बिना जिरह कह दे,
बस एक बार वाह कह दे,
जो भी कहना है वो
तू हो बेपरवाह कह दे,
बस एक बार वाह कह दे,मेरा दिल भी ना दुखे
कुछ इस तरह कह दे,
बस एक बार वाह कह दे,कुछ ना भी लगे लायक
तो भी बेवजह कह दे,
बस एक बार वाह कह दे!
जो भी मै कहूं
तू ठीक वही राह कह दे
बस एक बार वाह कह दे!
जय हिन्द,जय श्रीराम
कुंवर जी,
क्या कहें
जवाब देंहटाएंवाह भई वाह!! बहुत अच्छे. लेकिन बड़ी टेढी इच्छा है ये. :)
जवाब देंहटाएंवाह!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंare sirji agar hamare waah se kaam banta ho to...waah waah waah waah......:D
जवाब देंहटाएं@सुनील जी-क्या सोचने लगे....?
जवाब देंहटाएं@वंदना जी,@महफूज भाई--आपका स्वागत है जी,
@दिलीप भाई-बहुत सहारा हुआ जी आपकी "वाह" से भी....
आप सभी का धन्यवाद है जी....
कुंवर जी,
बढ़िया, कम से कम मन का एक कवि तो जागा उससे !
जवाब देंहटाएंइतना भी आसान नहीं है ये “वाह” पाना पत्नी जी से... अपने ग्रेट सुरेंद्र शर्मा जी ( चार लाईनाँ सुना रियो हूँ वाले) से पूछकर देखे कोई. बड़ी खुशामद की आँच पर ही पत्नियाँ वाह की रोटी सेंकती हैं.. वैसे हमारी तरफ से तो विशुद्ध वाह है!!
जवाब देंहटाएं:) :) :) अब आपकी तमन्ना पत्नी जी से वाह पाने की है...इंतज़ार कीजिये
जवाब देंहटाएंवाह वाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंआह्! से वाह्! तक का सफर निर्विध्न सम्पन्न हो :-)
जवाब देंहटाएंमेरी वाह से काम चले तो सरकार कह देंगे
जवाब देंहटाएंएक बार की छोडो हजार बार कह देंगे
हमारी वाह ! से काम चल जाए तो ये लीजिये तीन ..वाह ! .....वाह ! वाह ! वाह ! ...बढ़िया लिखा है आपने
जवाब देंहटाएं@मीणा जी-आपका स्वागत है जी,@राणा साहब-आपकी शेर-ओ-शायरी बहुत बढ़िया है,इस पर हमारी और से.."वाह"
जवाब देंहटाएं@पंडित जी-पहले मै इस पोस्ट का शीर्षक "आह से वाह तक" ही रखना चाहता था पर अन्त में जो पंक्तियाँ बनी वो ही शीर्षक बन गयी!
@शाहनवाज भाई-धन्यवाद है जी सहारा देने के लिए.....,
कुंवर जी,
@आदरणीय संगीता जी-चलो आप मुस्कुरा तो रही है!दो नारी शक्ति यहाँ पधारी है जी आज अपनी राय देने के लिए,और दोनों ने ही केवल नारी शक्ति को ही समर्थन दिया है......दुःख इस बात का ही कि "कविहृदय नारियाँ भी....." खैर चलो छोडो....
जवाब देंहटाएं@गोदियाल जी-यही आशावाद ही तो हमें महान बनाता है(अपनी नजरो में ही सही...)
@संवेदना के स्वर-जी आपका स्वागत है जी,सुरेन्द्र शर्मा तो असल में महान है जी!उनको सलाम,आपका धन्यवाद है जी....
कुंवर जी,
खाना भले ही ना दे
जवाब देंहटाएंतू बिना जिरह कह दे,
बस एक बार वाह कह दे,
lajwaab ............
धन्यवाद संजय भाई...
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
कुछ ना भी लगे लायक
जवाब देंहटाएंतो भी बेवजह कह दे,
बस एक बार वाह कह दे!
wah kunwarji patniji ke aage patiji ki brchargi badi acchi tarah prastut ki hai aapne >)
Ye le bhai, bagair milwat wali hai: wah wah wah
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