गुरुदत्त साहब की प्यासा एक अमर कृति है!उसी का ये गीत "ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...." जब मैंने फिल्म में देखा था तो मै लगभग रो पड़ा था!मेरे पसंदीदा गानों में से एक ये भी है!कल ही मेरे एक मित्र से हल्की-फुलकी बहस हो गयी ये लेकर कि ये गाना किस फिल्म का है!
वो भई साहब बोले ये गाना तो गुलाल फिल्म का है!अब मै इस पर थोडा मुस्कुराया,बोला कि नहीं,'प्यासा' का है!मै नयी फिल्मे लगभग ना के सामान ही देख पता हूँ और वो भई पुरानी!बस यही सोच कर मै अड़ा रहा इस बात पर कि ये तो प्यासा का ही है!वो भी पूरे आत्मविश्वाश से कह रहा था कि ये तो गुलाल का है!मुझे उसकी नासमझी पर तरस खाकर उसे प्यासा फिल्म का ये गीत सुना दिया,रफ़ी जी आवाज में!
अब मै तो फूला नहीं समा रहा था अपनी इस एकतरफा जीत पर!वो भई साहब एक दम शांत अब भी,उन्होंने अपना मोबाईल निकाला और फिर जो सुनाया वो आज आप के सामने है!
अपनी नासमझी भी समझ आ गयी थी!सुन कर मै स्तब्ध रह गया,फिल्म गुलाल तो मैंने नहीं देखी अभी तक पर ये गीत काफी कुछ सुना गया मुझे!आप भी महसूस करें....
ओ री दुनिया.…
ए सुरमई आँखें के प्यालो कि दुनिया ओ दुनिया,
सुरमई आँखें के प्यालो कि दुनिया ओ दुनिया
सतरंगी रंगों गुलालो कि दुनिया ओ दुनिया.
सतरंगी रंगों गुलालो की दुनिया ओ दुनिया
अलसाई सेजो के फूलों कि दुनिया ओ दुनिया रे,
अंगडाई तोड़े कबूतर की दुनिया ओ दुनिया रे
ए करवट ले सोयी हकीकत की दुनिया ओ दुनिया,
दीवानी होती तबियत की दुनिया ओ दुनिया,
ख्वाहिश में लिपटी ज़रुरत की दुनिया ओ दुनिया रे,
हेय्य्य इंसान के सपनो की नियत की दुनिया ओ दुनिया,
ओ री दुनिया आअ.… ओ री दुनिया-2
यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?-2 -3 !
ममता की बिखरी कहानी की दुनिया ओ दुनिया,
बहनों की सिसकी जवानी की दुनिया ओ दुनिया,
आदम के हवा से रिश्ते की दुनिया ओ duniya रे,
हेय्य्य शायर के फीके लफ्जों की दुनिया ओ दुनिया
ओ..…oooo….हो.ooo.…..हो.oo…ooooooooo…
ग़ालिब के मोमिन के ख्वाबो की दुनिया,
मजाजो के उन इन्क़लाबो की दुनिया-2
फैज़ फिरक साहिर ओ मखदूम
मेरे की ज़ौक की दागों की दुनिया,
यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?-२-३!
पलछिन में बातें चली जाती है है,
पलछिन में रातें चली जाती है है,
रह जाता है जो सवेरा वो ढूंढें,
जलता मकान में बसेरा वो ढूंढें,
जैसी बची है वैसी की वैसी बचा लो यह दुनिया,
अपना समझ के अपनों की जैसी उठा लो ये दुनिया,
छिटपुट सी बातों में जलने लगेगी संभालो ये दुनिया,
कट-पिट के रातों में पलने लगेगी संभालो ये दुनिया,
ओ री दुनिया.… ओ री दुनिया.…
वो कहें है की दुनिया यह इतनी नहीं है,
सितारों से आगे जहाँ और भी है,
ये हम ही नहीं है वहां और भी है,
हमारी हरेक बात होती वहीँ है,
हमें ऐतराज़ नहीं है कहीं भी,
वो आलिम हैं फ़ाज़िल हैं होंगे सही भी,
मगर फलसफा यह बिगड़ जाता है जो
वो कहते है.…
आलिम ये कहता वहां इश्वर है,
फ़ाज़िल ये कहता वहां अल्लाह है,
क़ाबिल ये कहता वहां इसा है,
मंजिल यह कहती तब इंसान से कि..
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया..
यह उजड़े हुए चन्द बासी चरागों,तुम्हारे ये काले इरादों कि दुनिया,
ओह्ह री दुनिया ओ री दुनिया.…ओ री दुनिया.
पियूष मिश्रा जी का नाम पहले तो नहीं सुना था पर अब काफी सम्मानित हो गया है,जब पता चला कि ये गीत उन्होंने ही लिखा भी है और गाया भी है!
दोनों ही गाने समय को परिभाषित करते दिखाई दे रहे है!यदि आपके पास थोडा सा समाया है तो शान्ति से
गुरुदत्त जी की प्यास यहाँ है....
और
गुलाल का रंग यहाँ....
देखे और महसूस करने की कोशिश करें......
जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
बंधु एक आद जगह कुछ भाषाई गलतियां हैं...हो सकता है आपसे पहली बार सुनने में त्रुटि हुई हो...सो उनको सही कर लिख रहा हूं,,,ठीक कर लें.....
जवाब देंहटाएंफ़ैज़ फि़राक साहिर ओ मकदूम
मीर की ज़ौक की दागों की दुनिया....
वो आलिम हैं फ़ाज़िल हैं होंगे सही भी
आलिम ये कहता वो ईश्वर है
फ़ाज़िल ये कहता वो अल्लाह है
क़ाबिल ये कहता वो ईसा है...
हमने देखी है गुलाल...फिलमांकन इन गीतों का तो क्या कहने!
जवाब देंहटाएं@मयंक जी आपका स्वागत है!त्रुटिया बताने और सुधरवाने के लिए धन्यवाद है जी!सुधार कर लिए है!
जवाब देंहटाएं@समीर जी-फिल्म तो नहीं देखी बस ये गाना ही सुना था!लगता है अब तो ये फिल्म भी देखनी पड़ेगी!
कुंवर जी,
बढ़िया प्रस्तुति कुंवर साहब !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे....प्यासा का गीत तो सुना हुआ था गुलाल के भी पियूष के स्वर में बहुत अच्छा लगा .....शुक्रिया सुनाने के लिए ......!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंभला गुरूदत्त का मुकाबला कोई कर सकता है क्या। आपकी पोस्ट के बाद एक बार फिर मैं ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो गा रहा हूं। शानदार पोस्ट के लिए आपको बधाई।
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