आज ही घर से वापिस आया हूँ!बहुत कुछ पढ़े बिना छूट गया होगा!
एक लम्बी यात्रा और वो भी बस में खड़े होकर..........थकान भी बहुत हो रही है!
कुछ भी नया जो लिखा गया उस से संतुष्टि सी नहीं मिली सो आज पुरानी कविता फिर आपके समक्ष........
एक लम्बी यात्रा और वो भी बस में खड़े होकर..........थकान भी बहुत हो रही है!
कुछ भी नया जो लिखा गया उस से संतुष्टि सी नहीं मिली सो आज पुरानी कविता फिर आपके समक्ष........
किसी का भी दुःख मै नहीं बाँट सकता हूँ,
किसी की भी राहों से कांटे मै नहीं छाँट सकता हूँ,
पता नहीं कैसी मिट्टी है मेरी!
जो मुझे जैसा समझता है मै वैसा ही हूँ मै,
जो खुद को जैसा भी समझता है वैसा भी हूँ मै,
पता नहीं कैसी मिट्टी है मेरी!
ऐसे तो हाड़-मांस कि ही हूँ मै,
पर नहीं किसी के विश्वाश का हूँ मै,
पता नहीं कैसी मिट्टी है मेरी!
गीली सी मिट्टी मानो,कुछ भी घड़ लो,
कोरा कागज़,जो मर्जी लिखो और पढ़ लो,
कुछ-कुछ ऐसी मिट्टी है मेरी!
हर-दीप जल कर बुझ जाता है,
अँधेरा पहले भी था,वही बाद में भी नजर आता है,
कुछ-कुछ ऐसी मिट्टी है मेरी!
पर शायद मिट्टी भी मेरी कहाँ है?
धुल सी,अभी यहाँ,अभी न जाने कहाँ है?
कुछ-कुछ ऐसी मिट्टी है मेरी!
मिट्टी मेरी....
न जाने कैसी है,
है! पर न होने जैसी है!
जय हिन्द,जय श्रीराम,कुंवर जी,
सुन्दर रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबैसे हम भी बैसे ही हैं जैसा आपने अपनी रचना में बताया
हर-दीप हर बार जल कर बुझ जरूर जाता है
जवाब देंहटाएंपर जब तक जलता है राह सबको दिखला जाता है
सीखे हम हर-दीप से जलकर भी पर उपकार करना
हर पल हो उजास मय, जीवन में कभी ना निराश होना
उसका कर्म है जलना, फितरत अंधियारों से ना डरना
हर-दीप कि यही अभिलाषा,अमित-ज्योत जग में भरना
हर दीप जलकर बुझ जाता है ......
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना कुंवर जी
एकबात आपसे भी , रचना पर ये लोक-फुक बेकार है , भला कोई क्या चुरा लेगा ? इसे हटा ही दीजिये क्योंकि रचना में सर्वोतम क्या चीज लगी यह टिप्पणीकार उसे कटपेस्ट कर के ही बता सकता है !
हर-दीप हर बार जल कर बुझ जरूर जाता है
जवाब देंहटाएंपर जब तक जलता है राह सबको दिखला जाता है
सीखे हम हर-दीप से जलकर भी पर उपकार करना
हर पल हो उजास मय, जीवन में कभी ना निराश होना
उसका कर्म है जलना, फितरत अंधियारों से ना डरना
हर-दीप कि यही अभिलाषा,अमित-ज्योत जग में भरना
....बेहतरीन
जवाब देंहटाएं"पता नहीं कैसी मिटटी है मेरी." बहुत ही सुन्दर रचना कुंवर जी. बहुत खूब! हमारी तरफ से एक पसंद का चटका भी
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna kunwar ji...bahut hi umda...
जवाब देंहटाएंapaki mitti behtarin hai. nisandeh.
जवाब देंहटाएंआराम कर लिजिये फिर लिखियेगा..यह रचना भी उम्दा रही!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगे रहो इंडिया
जवाब देंहटाएंआप सब के प्यार से सब थकान दूर हो गयी है जी.....
जवाब देंहटाएं@समीर जी,सुनील जी,गोदियाल जी,@उदय जी-आप सब का स्नेहाशीष यूँ ही मिलता रहा तो थकान भला क्या नाचेगी...क्यों जी?
@राणा साहब,@दिलीप भाई,@शाहनवाज भाई,@विचार शून्य जी-आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद है जी,
@अमित भाई साहब-आपकी हर रचना लाजवाब होती है,उसमे अपना नाम देख मै खुद कई बार संभाल नहीं पता हूँ!ये प्रशंसा पचाने में बहुत दिक्कत आती है.....
कुंवर जी,
mitti to umda hai aapki...rachna bhi bahut khoob rahi.
जवाब देंहटाएंवाह्! बेहद कमाल की रचना...कुँवर जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव
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