खेलता-खाता,रोता-नहाता,
रूठता-मनाता
भी मै शायद अधुरा ही होता हूँ!
आंसुओ के अहातो में
दुखो के अखाड़ो में,
मुश्किलों के पहाडो में
अपनों के मेलो में
परायो के झमेलों में,
अपनों के मेलो में
परायो के झमेलों में,
भी शायद मै अधूरा ही होता हूँ!
माँ के ख़यालात में,
और जब कलम होती है हाथ में
तो ही मै पूरा होता हूँ!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
मां के खयालात में और जब कलम होती है हाथ में.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
waah bahut khoobsoorat vichaar hain...sach hai maan sath na ho to sab adhura hi hota hai...
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंमाँ के लिए आपके ये शब्द अक्षरश सही हैं! यह मेरी तरफ से ....
ये हमारे लाख दुःख सहती है
लेकिन फिर भी चुप रहती है
और भले दुश्मन हो जाएँ
माँ तो लेकिन माँ रहती है |
रत्नेश त्रिपाठी
रुला दिया भाई...
जवाब देंहटाएंहरदीप आखिरी पंक्तिया तो बिलकुल लाजवाब हैं और याद आया एक पुराना दोहा सा :-
जवाब देंहटाएं" गीत गजले खूब कही , मिला बहुत सम्मान !
इसमें मेरा कुछ नहीं बस माँ का हैं वरदान ! "
BAHUT HI SUNDER AHSASO SE BHAI RACHNA....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास.....
जवाब देंहटाएंसही कहा....तभी इन्सान पूरा होता है!!
जवाब देंहटाएंमन में अब अभिलाषा एक ,
जवाब देंहटाएंचाहे मिले जन्म अनेक |
गोंद तुम्हारी , प्यार तुम्हारा ,
आँचल का हो सार तुम्हारा |
वाह !! कुंवर जी ........गजब की रचना है ..........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण उदगार...बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा
जवाब देंहटाएंसारा चैन शुकुन उसके प्यार में ही मिलता हैं
हम चाहे कितने भी बड़े हो जाये पर उनके लिए हमेशा बच्चे ही रहते हैं .
sundar aur bhavpurn.yun hi likhte rahiye.
जवाब देंहटाएंमाँ के ख्यालात में
जवाब देंहटाएंऔर जब कलम होती है हाथ में
तभी मैं पूरा होता हूँ.
-सुन्दर.
माँ का आँचल और कलम का सहारा... बहुत सुन्दर कुंवर जी. सम्पूर्णता कि सम्पूर्ण व्याख्या कर दी आपने..
जवाब देंहटाएंआपने मुझे भी याद दिला दी कुँवर जी..
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक धन्यवाद है जी.....
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
khoobsurat abhivyakti.
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