क्या वर्ण वयस्था उचित थी या है या हो सकती है?
उस हिसाब से चार वर्ण-एक पंडित जो ज्ञान बांटता है,एक क्षत्रिय-जो अपनी जान की भी परवाह नहीं करता दूसरो की रक्षा करने में,एक वैश्य-जो सभी के लिए 'अर्थ' को सही अर्थो में प्रयोग करता है,व्यापार करता है,एक शुद्र-जो सेवा करने में ही अपनी मुक्ति जानता है!अब ये नेता नामक प्राणी किस वर्ण में आएगा?
आदरणीय गोदियाल जी की पोस्ट अर टिप्पणी करते समय आया ख्याल आपके हवाले...कृप्या सभी वर्णों की गरीमा और सम्मान को ध्यान में रख कर जवाब देना!
मुझे आपसे बहुत उम्मीदे है.....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
jaise insaaniyat ki jaat nahi hoti...waise hi netagiri ki bhi jaat nahi hoti haan...wo chalti jaati ke bal pe hi hai...
जवाब देंहटाएंयह वर्ण व्यवस्था उस समय के अनुसार सही हो सकती है...लेकिन समय के साथ साथ आज शायद यह सही नही लगती। वैसे भी अब धन और पद ही वर्ण तय करता है...
जवाब देंहटाएंऔर जहाँ तक नेता नामक प्राणी का वर्ण है...वह तो अवर्णीय है:)
ऐसा प्राणी जो पूरी वर्ण व्यवस्था को धता बताते हुए निकृष्टता के चरम को पार कर जाये वो ही नेता बन सकता है, अब इन्हें कोई भला क्या वर्गीकृत करेगा. :)
जवाब देंहटाएंआशा है इस जबाब के बाद भी सभी वर्णों की गरिमा और सम्मान बरकरार रही होगी.
वैसे इनका स्थान पूछने में इतना शरमाये क्यूँ आप? चुनाव लड़ने का इरादा तो नहीं है कहीं..हा हा!!
जवाब देंहटाएंकहते हैं हाथी वाली चमरी और गधे वाला दिमाग ही आज नेताओं की पहचान है / अच्छी सार्थक प्रस्तुती / कुवर जी आज हमें सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
जवाब देंहटाएंनेता "अवर्ण " प्राणी है जो अपनी जरूरत के हिसाब से कही भी फिट हो जाता है
जवाब देंहटाएंसोनल जी की टिप्पणी को मेरी भी समझी जाये ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@श्री जी-आपका स्वागत है जी,आपने खूब औकात दिखाई इन नेताओं की!पर शायद आप वो "सभी वर्णों की गरीमा और सम्मान का ख्याल रखने वाली बात" को लांघ गए जोश ही जोश में!
जवाब देंहटाएंमै आपसे क्षमा चाहता हूँ अपनी गलती की,क्योकि मै आपकी बेहद संतुलित टिप्पणी हटाने की भूल कर रहा हूँ,क्योकि मै पूर्वाग्रह से ग्रसित मानव हूँ,डरता हूँ कहीं कोई गलत चर्चा यहाँ ना चल पड़े....
कुंवर जी,
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जवाब देंहटाएंअसली मीनाकुमारी की रचनाएं अवश्य बांचे
जवाब देंहटाएंफिल्म अभिनेत्री मीनाकुमारी बहुत अच्छा लिखती थी. कभी आपको वक्त लगे तो असली मीनाकुमारी की शायरी अवश्य बांचे. इधर इन दिनों जो कचरा परोसा जा रहा है उससे थोड़ी राहत मिलगी. मीनाकुमारी की शायरी नामक किताब को गुलजार ने संपादित किया है और इसके कई संस्करण निकल चुके हैं.
@शाह नवाज भाई-मै आपकी बातो से लगभग सहमत हूँ!फिलहाल उन्हें कोसना ही मुख्य विषय नहीं है,खुद को खंगालने की एक कोशिश भी है ये!कुछ उदाहरण,कुछ मानदंड तो चाहिए हमें खुद को जांचने-परखने!
जवाब देंहटाएं@जय जी,@मिथिलेश भाई,@सोनल जी-हम आप से भी सहमत है बहुत-बहुत धन्यवाद है जी,अपने अमूल्य विचार यहाँ प्रस्तुत करने के लिए!
कुंवर जी,
इतने बड़े और महान लोगो के बीच मैं तो सिर्फ दर्शक ही बन सकता हू .
जवाब देंहटाएं@समीर जी-आपका स्वागत है जी,मुझे पता नहीं क्यों असाधारण रूप से ख़ुशी सी अनुभव होती है जब मै देखता हूँ कि आप मुझ पर निरन्तर कृपा-दृष्टी बनाए हुए हो!
जवाब देंहटाएंअपनी बात कहने में मै शरमा नहीं रहा हूँ जी,क्योकि मुझे कोई चुनाव-वुनाव नहीं लड़ना है जी,बस थोडा सा घबरा जरुर रहा था जी कहीं किसी भी वर्ण कि गरीमा और सम्मान को ठेस ना पहुँच जाए मेरी गलती से!अजी नेता को फिट करना था ना इस लिए......
@बाली जी-आपका स्वागत है जी,आपने भी सही वर्णन किया जी उस "अवर्णीय" प्राणी का!साथ ही सही विश्लेषण भी प्रशन का!आपका बहुत-बहुत धन्यवाद है जी!
@ दिलीप भाई-आपने भी सही कहा जी....
कुंवर जी,
भ्रष्ट नेता या अधिकारी कोई एलियन नहीं है, बल्कि हमारे बीच में से ही आते हैं. इस समाज का ही हिस्सा हैं. आज हर छोटे से छोटा तथा बड़े से बड़ा व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है, चाहे वह बिना मीटर के ऑटो रिक्शा चलने वाला हो, या मिलावटी दूध या कोई और खाद्य पदार्थ बेचने वाला हो या फिर किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी पद पर आसीन व्यक्ति. यहाँ तक कि लोगो ने धर्म को भी अपना व्यवसाय बना लिया है. हर दूकानदार किसी भी वस्तु को बेचने के लिए हज़ार तरह के झूट बोलता है. ख़रीदा है 15 रूपये का और बताएगा 20 रूपये, इस पर यह जवाब कि अगर झूट नहीं बोलेंगे तो काम कैसे चलेगा. यह नहीं सोचते कि जो ईश्वर अरबों-करोडो जानवरों, पेड़-पौधों को खिला कर नहीं थका, वह क्या एक इंसान को खिलाने से थक जाएगा?
जवाब देंहटाएंअसल बात यह है कि पाप पर होने वाले ईश्वर के गुस्से का डर हमारे अन्दर से निकल गया है. जिस दिन यह डर बिलकुल ही समाप्त हो जाएगा, दुनिया का अंत हो जाएगा. पश्चिम ने अध्यात्म की तरफ लौटना शुरू कर दिया है, अगर हम भी समय रहते जाग जाएँ तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भारत बना सकते हैं. वर्ना भ्रष्टाचार में लिप्त दीमक लगा भारत छोड़कर जाएँगे और वह इसे और कमज़ोर ही बनाएँगे.
@असल बात यह है कि पाप पर होने वाले ईश्वर के गुस्से का डर हमारे अन्दर से निकल गया है.100% सहमत.
जवाब देंहटाएंये चारो वर्ण भी तभी तक संतुलित थे जब तक कि ईश्वरीय विधान का आदर हमारे अन्दर था.और हर उस मानव को आदर दिया गया जिसमे समाज का नेतृत्व करके नई दिशा दी, इसमें वर्ण विचार नहीं किया गया कि नेतृत्व देने वाला किस वर्ण का है.
पर अब तो हम भौतिकता में ही प्रवीणता पाने को, जीवन का आदर्श मान बैठे है जिसमें किसी के नेतृत्व कि आवश्यकता भी नहीं है शायद .
@अमित भाई साहब प्रकृति को जो करना होता है वो करती है!हमें उसे उसी रूप में स्वीकार भी करना होता है!
जवाब देंहटाएंआपके लौटने की बहुत ख़ुशी हो रही है जी!
वैसे अपनों कमी खलती है जी और खली भी है...
कुंवर जी,
प्रहार करने का सुन्दर तरीक हमें पसंद आया
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