कई बार
जिंदगी बहुत
करीब से गुजर जाती है,
अनजाने में
हमें जिन्दा होने का
एहसास करा जाती है,
मौत
हमें एक बार फिर से
मारने में शरमाती है,
और यूँ हमारी एक-आध
धड़कन और बढ़ जाती है!
भावो और शब्दों
की लड़ाई
आँखों से झड़ जाती है,
समय की पेशानी पर
कुछ सलवटें और पड़ जाती है,
फिर
अतीत की उदासी
एक झटके से उघड़ जाती है,
और
बेजान पुतलिया
फिर हल्की सी सिकुड़ जाती है,
और यूँ हमारी एक-आध
धड़कन और बढ़ जाती है!
जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
और यूं ही एकाध धडकन बढ जाती। बहुत खूब
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंये कौन सी धडकन की बात कर रहे हो आज कुंवर जी
जवाब देंहटाएंमरीज वाली या फिर दूसरी तरह की धडकन जिसे तुम जिंदगी कहते हो .
कौन सी ?
@राणा साहब-
जवाब देंहटाएंजब तक जिन्दा है तो जिंदगी के ही मरीज है,
फिर एक दी मौत भी बहला लेगी दिल अपना हमसे!
@फिरदौस जी-आपका शुक्रिया जी,मुझ तुच्छ पर सदा ही ये नजर बनाए रखे!
@आनद जी-आपका स्वागत है जी,आपको ये पंक्तियाँ अच्छी लगी ये मेरा सौभाग्य है जी!धन्यवाद है जी आपका भी!
कुंवर जी,
@ संजीव जी, यूँ ना चुहल कीजिये हरदीपे से
जवाब देंहटाएंखोलोगे परत तो कही छुप ना जाये लजाकर
हरदीप भाई भारी गर्मी में ठंडी हवा का झोंका आ गया !
बहुत बढ़िया !
बहुत खूब ... कुछ दर्द भरे एहसास लिए गहरी रचना .....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....अच्छा है यूँ ही धड़कने बढाती रहें और हम लोगों को नयी रचना पढने को मिलती रहे
जवाब देंहटाएंauchhi rachna
जवाब देंहटाएंmaan gye aapko
waah sirji aapne to kai dhadkanein badha di...
जवाब देंहटाएंएक सत्य को बयां करती कविता
जवाब देंहटाएंkya baat hai, ladke parul. Phoda aaj to.
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