जब किसी राह पर सब कुछ तपाती हुई इस धूँप से परेशान होते होंगे तो जरूर नजर किसी पेड़ को तलाश करती होगी! जैसे ही कही कोई छोटा मोटा जैसा भी पेड़ दिखा नहीं कि सुस्ताने के लिए मन करता ही होगा! कही बहुत ज्यादा जल्दी ना हो तो कुछ देर पेड़ के नीचे रुक जाते भी होंगे , किसी शीघ्रता के कारण यदि ना भी रुके तो भी मन में उस छाँव का मोह तो उपजता ही होगा, काश; कुछ देर रुक पाते यहाँ!यदि रुक जाए तो अवश्य ही बहुत शान्ती मिलती होगी, मन से इस पेड़ को लगाने वाले के लिए बहुत आशीष भी निकलते होंगे!
क्या कभी ऐसा पेड़ लगाने की बात भी मन में आती है?
जय हिन्द, जय श्रीराम!
कुँवर जी !
एक कार्टून देखा था कहीं कि पेड़ को काटने के लिए आये लोग उसी पेड़ के नीचे सुस्ता रहे थे.
जवाब देंहटाएंचिंता जरूरी है.
मात्राओं का ध्यान रखें तो रचना की सार्थकता उभर आती है.
बहुत शुभकामनाएं.
आदरणीय वाणी गीत जी, बहुत दिनों के बाद मोबाइल से पोस्ट लिखी थी, बस इसी लिए बहुत सी अशुद्धियां हो गयी थी लिखने में। मोबाइल पर पोस्ट लिखने का इतना अभ्यास भी नही था और समय भी बहुत कम था तो सुधार भी समय रहते नही हो पाया।
हटाएंइतने दिनों के पश्चात पोस्ट लिखी तब भी आपका इतना स्नेह मिला ये देख कर बहुत ही अच्छा लगा, ये ब्लॉग पर बने रहने के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा का काम करेगा।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सामाजिक असुरक्षा के साये में कल्याणकारी योजनाओं का लाभ क्या“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहिंदी में अशुद्धियों का होना अखरता है ।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा। भूल सुधार हेतू प्रेरित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद है जी।
हटाएंबेहद भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंसंजय भाई बहुत बहुत धन्यवाद। आप हमेशा साथ खड़े ही रहते है।
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