सर्द रात और गहराती जा रही थी,
पलके थी कि झपकना भी भूल गयी!
साँसों पर जोर नहीं था सो चल रही थी.....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
सोमवार, 10 जनवरी 2011
शनिवार, 8 जनवरी 2011
ईंट,पत्थर,कंकड़ और तिनको से भी बच्चा खेलता है...
कौन कहता है कि हंसी में रोना नहीं होता,
जरा उनसे तो पूछो जिनके पास सूना सा कोई कोना नहीं होता!
ईंट,पत्थर,कंकड़ और तिनको से भी बच्चा खेलता है,
जिस के पास खेलने को कोई खिलौना नहीं होता!
घास मिली तो सही नहीं तो जमीन पर ही सो गया,
जिसके पास बिछाने को कोई बिछौना नहीं होता!
जिन्दगी को जी कर तो हम भी देखते कभी ना कभी,
जो जिन्दगी भर दुखो को यूँ ही ढोना ना होता!
मन की प्यास बुझाते आँख के पानी से ही हम,
जो किस्मत पे अपनी हमें कभी रोना ना होता!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
जरा उनसे तो पूछो जिनके पास सूना सा कोई कोना नहीं होता!
ईंट,पत्थर,कंकड़ और तिनको से भी बच्चा खेलता है,
जिस के पास खेलने को कोई खिलौना नहीं होता!
घास मिली तो सही नहीं तो जमीन पर ही सो गया,
जिसके पास बिछाने को कोई बिछौना नहीं होता!
जिन्दगी को जी कर तो हम भी देखते कभी ना कभी,
जो जिन्दगी भर दुखो को यूँ ही ढोना ना होता!
मन की प्यास बुझाते आँख के पानी से ही हम,
जो किस्मत पे अपनी हमें कभी रोना ना होता!
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
शनिवार, 1 जनवरी 2011
जब सुख तक चला गया तो इस दुःख की तो क्या औकात है!
अरे!बस थोड़े से दिनों की तो ओर बात है,
देखो साल बदला है.....
तो हाल क्यों नहीं बदलेगा!
जब सुख तक चला गया तो इस दुःख की तो क्या औकात है!
रोशनिया तक खो जाती है तो
परछाइयों की क्या बिसात है!
सच मे;आँखे खोलो,
वो निशा तो गुजर चुकी,
हो गयी नव प्रभात है!
आओ हम सब मिल कर इस सूर्य-गति-आधारित नव वर्ष का अभिनन्दन करे....
जो कुछ भी हम अपने लिए अच्छा सोच सकते है वो ही सबके लिए सोचे....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
देखो साल बदला है.....
तो हाल क्यों नहीं बदलेगा!
जब सुख तक चला गया तो इस दुःख की तो क्या औकात है!
रोशनिया तक खो जाती है तो
परछाइयों की क्या बिसात है!
सच मे;आँखे खोलो,
वो निशा तो गुजर चुकी,
हो गयी नव प्रभात है!
आओ हम सब मिल कर इस सूर्य-गति-आधारित नव वर्ष का अभिनन्दन करे....
जो कुछ भी हम अपने लिए अच्छा सोच सकते है वो ही सबके लिए सोचे....
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,
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