बात उन दिनों की है जब कुंवर जी अपना 3 वर्षीय अभियांत्रिकी का उपाधि-पत्र प्राप्त करने के पश्चात भी गाँव में ही समय व्यतीत कर रहे थे!कुछ दिन नौकरी भी कर ली थी,छूट गयी थी किन्ही कारणों से!तब तक स्नातक भी हो चुके थे 'अर्थशाश्त्र' जैसे विषय से!बावजूद इसके भी कुंवर जी घर पर ही समय व्यतीत कर रहे थे!बैठक में एक नीम का पेड़ पूरा दिन साथ निभाता था उन दिनों हमारा!ऐसे ही एक दोपहर हमने गौर की कि एक हमारा पुराना मित्र;जो विद्यालय में हमारे साथ ही पढता था,या यूँ कहिये कि साथ छुपा करते थे कक्षा से!तभी की मित्रता थी जो बस तब तक ही थी!
हाँ तो वो मित्र,हमने देखा के वो डॉक्टर बन गया है!हमारे अचरज का तो कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं था! ये देख कर नहीं के वो डॉक्टर बन गया है,बल्कि ये देख कर कि वो अति-व्यस्त भी है!हर घंटे में उसके दो-तीन चक्कर लग जाते थे प्रतिदिन ही!मतलब धंधा खूब चल रहा था!कमाई भी खूब हो रही होगी!'एक वो' जिसने 10वी तो शायद कर ही ली थी जैसे-कैसे भी,वो आज गाँव का एक अति-व्यस्त डॉक्टर है और 'एक हम' जो इतनी उपाधिया प्राप्त करने के पश्चात भी गाँव में खाली बैठे है "बेरोजगार"!
जब भी 'वो' अपनी साईकिल पर पता नहीं क्या गुनगुनाता हुआ हमारे सामने से गुजरता तो सांप से लोटते थे हमारी छाती पर!
और उस दिन तो हमसे रहा ही नहीं गया!जो खार मन में इक्कट्ठा होता जाता था इतने दिनों से, सोचा आज कुछ तो बहार निकाल ही दे!
अपनी पूरी अदाकारी झोंक दी हमने उस से बात करने में!
शुक्र है के मन में जो बाते-भावनाए होती है,उनकी झलक बहार नहीं मिलती कैसे भी!ना ही उनमे से कोई विशेष प्रकार कि गंध फैलती है वातावरण में!जैसे अच्छी भावनाओं से सुगंध और बुरी से दुर्गन्ध!ऐसा होता तो किसी से बात करना ही असंभव हो जाता हमारा तो!पर शुक्र है कि ऐसा नहीं है!
तो हमने उसे एक दिन रोक ही लिया!आँखों समस्त प्रेम उड़ेल दिया हमने,जितना हम उड़ेल सकते थे,समस्त!अब चमक तो स्वाभाविक ही आनी थी आँखों में!उसे तो ऐसा लगा होगा जैसे हमे तो इच्छित वर ही मिल गया हो उस से मिल कर!पुरानी स्मृतियों को बैसाखी बना कर बात-चीत करने के लिए खड़े हो गए हम तन कर!जितनी जलन मन में होती थी उसे देख कर,आँखों में उतना ही संतोष!
पूछने पर पता चला के बच्चे,बूढ़े,जवान,औरत और तो और जानवरों तक का इलाज वो सफलतापूर्वक कर लेता था!
अब बैसाखी कमजोर पड़ती दिखाई दी तो जो असल बात थी मन में वो निकाल ही दी उसी अदाकारी से!
लघभग चापलूसी सी करते हुए पूछ ही लिया उसकी सफलता का राज!
अब जैसे उसकी तो दुखती हुई रग दब गयी हो जैसे!जो प्रसन्नता थी मुख-मंडल पर सब गायब!एक पुरानी दास्ताँ जो खुशियों से शुरू हुई थी,अब ग़मो कि और बढ़ चली थी!
पता लगा कुछ भी तो अलग नहीं था उसकी और हमारी स्थिति में!बस हमारे पास एक-दो उपाधियो के साथ का अनुभव था और उसके पास केवल 10वी के साथ का!
हालात एक थे,फिर ये वयस्तता कैसी?
चलती बात पर अपनी ये कुण्ठा भी हमने ख़त्म करनी चाही!अब थोडा आत्मविश्वाश भी आ रहा था हमारे अन्दर!अंततः ये भी पूछ ही लिया हमने!
अब जो जवाब आया,उसमे उस बन्दे की सारी दार्शनिकता उभर आई!
वो बोला,"कैसी वयस्तता भाई?कोई दवाई लेने मेरे पास आता ही नहीं,साईकिल पर डॉक्टर का झोला टाँगे इसलिए गाँव में घूमता रहता हूँ के कोई देख कर ही रोक ले कुछ दवाई लेने के लिए!पर कोई रोकता भी नहीं!"
बस !
अब तो जैसे मन के सारे ऋण चुकते हो गए हो!सारा अभिनय ख़त्म!सच्ची प्रसन्नता आँखों में झलक आई,एक विजयी मुस्कान होंठो पर थिरक गयी!मंतव्य पूर्ण हो चुका था अपना तो,पर उसका वाक्य जारी था!मगर अपने किस काम का!
जो सुनना था सुन लिया था,संतुष्टि हो जाने पर सब व्यर्थ जान पड़ता है!सो कुछ और सुनाई ही नहीं दे रहा था!खुद के लिए जो अपमान मन में पनप रहा था कुछ कम हुआ!अब एक बात और सोची के जब वो ये जानते हुए भी कि उस से कोई दवाई नहीं लेता है फिर भी गाँव में घूमता है ये सोच कर कि आज तो कोई ले ही लेगा,तो मै क्यों अभी तक गाँव में ही पड़ा हूँ!जब करनी नौकरी ही है तो कही तलाश क्यों नहीं कि जाए?मिल भी जायेगी एक दिन!और आज मै कर रहा हूँ नौकरी!
कुंवर जी,
excellent post kunwar ji !!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंऔर ये डॉक्टर वाले हालत गाँव में लगभग हर नवयुवक के होते हैं क्योंकि शहर में पैसो के बिना दाल गलती नहीं और गाँव में नेता टाइप के लोग इनसे बस दरिया बिछ्वाते हैं और नौकरी के नाम पर कोरा आश्वासन जैसे
" इस बार तेरी बात करूंगा हुड्डा साहब से "
really a good post.
जवाब देंहटाएंmazaa aa gaya
मजेदार!
जवाब देंहटाएंwelcome to NAIDUNIA..
जवाब देंहटाएंNice BLOG...
Bada karara vyang hai!
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो आप सब का मुझे झेलते रहने का आभार प्रकट करना चाहुंगा!जिन्होंने मुझे "टिप्पणी ब्रांड" उत्साहवर्धक टोनिक की दो बूँद दी है,उन्हें मै बताना चाहूँगा के उनका ये प्रयोग सौ फीसदी सफल रहा!हर एक बूँद मेरे लहू में मिल जो रासायनिक क्रिया कर रही है उस से आप ज्यादा दिन अनभिज्ञ नहीं रह पायेंगे!
जवाब देंहटाएंमुझ तुच्छ पर दृष्टि डालने के लिए एक बार फिर मै आभार व्यक्त करता हूँ,साथ में आशा करता हूँ कि ये स्नेहाशीष सदा मुझे मिलता रहेगा!
कुंवर जी,